आज सुभाषचंद्र बोस के बारे में जानते है death of subhash chandra bose
भारतीय इतिहास में सुभाषचन्द्र बोस एक महान व्यक्ति एवं बहादुर स्वतंत्रता सेनानी के रूप में विख्यात है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान अविस्मरनीय है उनके द्वारा दिया गया नारा “
” उनकी क्रांतिकारी सोच को दर्शाता है, सुभाषचंद्र बोस के अतिरिक्त भारतीय इतिहास में ऐसा कोई व्यक्तित्व नहीं हुआ, जो एक साथ महान सेनापति, वीर सेनिक, राजनीति का अदभुत खिलाडी और अंतरराष्टीय प्रसिध्दी प्राप्त पुरुषो, नेताओ के समकक्ष साधिकार बैठकर कूटनीति तथा चर्चा करने वाला हो, महात्मा गाँधी के नमक सत्याग्रह को ‘नेपोलियन की पेरिस यात्रा’ की संज्ञा देने वाले सुभाषचंद्र बोस एक ऐसे व्यक्तित्व थे, जिनके पांच लक्ष्य से कभी पीछे नहीं हठे तथा उन्होंने जो सपना देखा वो पूरा किया |
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सुभाषचंद्र बोस का जीवन परिचय (biography of Subhash Chandra Bose)
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महान व्यक्तित्व सुभाषचंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा प्रान्त के कटक शहर में हुआ था, उनके पिता जानकीनाथ बोस एक प्रसिध्द सरकारी वकील थे, जिनके पूर्वज बंगाल के चौबीस परगना जिले के केदालिया गाँव के निवासी थे | सुभाषचंद्र बोस की प्रारंभिक शिक्षा कटक में ही हुई थी आगे की शिक्षा के लिए उन्होंने कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कोलेज में प्रवेश लिया | उनके पिता चाहते थे कि बोस प्रशासनिक अधिकारी बने, अपने पिता के के इस स्वप्न को साकार करने के उद्देश्य से कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी ए करने के बाद वे इंग्लैंड चले गए और वर्ष 1920 में भारतीय सिविल सर्विस की परीक्षा में चोथा स्थान प्राप्त किया , उस समय ICS की परीक्षा पास करना आसान नहीं था इस महत्वपूर्ण उपलब्धि को प्राप्त करने के बाद भी उन्हें अग्रेजो के अधीन कार्य करना स्वीकार नहीं था अन्तः उन्होंने यह नौकरी करने से इंकार कर दिया और देश के स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए
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अग्रेजो के विरुद्ध अपने संघर्स की सुरुआत करते हुए सुभाषचंद्र बोस, देशबंधु चितरंजन दस सहयोगी बन गए प्रिंस ऑफ वेल्स के स्वागत में उन्हें प्रथम बार गिरफ्तार कर छः महीने के लिए जेल भेज दिया वर्ष 1924 में दीनबंधु कलकत्ता के मेयर बने तब सुभास चन्द्र को उन्होंने चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर बनाया उनके स्वतंत्रता उन्मुखी कार्यक्रमों और क्रियाकलापों से भयभीत होकर सरकार ने उन्हें उसी वर्ष फिर गिरफ्तार कर लिया और जेल भेज दिया पर ये उन्हें ज्यादा समय तक जेल में नन्ही रख पायी और 15मई , 1927 को उन्हें रिहा कर दिया
नाम : सुभाषचंद्र बोस
पिता का नाम : जानकी नाथ बोस
माता का नाम : प्रभावती देवी
जन्म : 23 जनवरी 1897
म्रत्यु : 23 अगस्त 1945
जन्म स्थान : गाँव – केदालिया, जिला- चौबीस परगना, राज्य- उड़ीसा
नई पार्टी नाम : फोरवर्ड ब्लाक
सुभाषचंद्र बोस का राजनीति में योगदान(Subhash chandra bose’s contribution to politics)
सुभाषचंद्र बोस अपने राजनीति के जीवन में भारतीय राष्टीय कांग्रेस से जुड़े थे वर्ष 1938 में काग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन में वे गाँधी जी द्वारा नामजद उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैया के विरुद्ध अध्यक्ष पद का चुनाव जीतने में सफल रहे, पट्टाभि सीतारमैया की पराजय को गाँधी जी ने अपनी पराजय बताया , सुभाषचंद्र बोस गाँधी जी का बहुत सम्मान करते थे अन्तः दक्षिणपंथी कोग्रीसियो के असहयोग को देखते हुए उन्होंने काग्रेस से त्यागपत्र दे दिया और फोरवर्ड ब्लाक नामक नई पार्टी की स्थापना की थीdeath of subhash chandra bose
आजाद हिन्द फौज निर्माण how to death subhas chandra bose(INS) (Azad Hind Fouj)
बंगाल में उठ रही क्रांति को देखते हुए उन्हें वर्ष 1941 में फिर एक बार उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उनके घर पर उन्हें नजबंद कर दिया और कड़ा पहरा लगा दिया फिर भी वे भेष बदलकर भागने में सफल रहे और वहा से भागकर वे काबुल होते हुए जर्मनी पहुंचे उस समय जर्मनी का शासक तानाशाह हिटलर था
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उसने उनका यथेस्ट सम्मान किया और दक्षिद पूर्वी एशिया जाने की उनकी योजना को समर्थन व सहयोग दिया जून, 1943 में सुभाषचंद्र बोस जापान चले गये वहां से फिर ये सिंगापुर के लिए रवाना हुए वहा उसी वर्ष 4 जुलाई को रासबिहारी बोस ने उन्हें आजाद हिन्द फ़ौज का सेनापति बना दिया सेनापति बनने के बाद सुभाषचंद्र बोस और रासबिहारी जी ने दोनों ने मिलकर आजाद हिन्द फौज को पहले से ज्यादा मजबूत किया जापान, इटली, चीन, जमर्नी, फिलिपिन्स, कोरिया, मंचुको, और आयरलैंड, देशो की सरकारो ने उनकी सरकार को मान्यता दी , बाद में उन्होंने बर्मा (म्यामार) में रंगून को अपनी अस्थाई सरकार की राजधानी बनाया और अंदमान निकोबार व्दीप को जीतकर वहां अनुशासित एवं व्यवस्थापूर्ण दंग से आजाद हिन्द सरकार का कार्य चलाने लगे
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6 जुलाई, 1944 को उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गाँधी के नाम एक प्रसारण जारी किया जिसमे उन्होंने गाँधी जी को ‘राष्ट्रपिता’ कहकर संबोधित किया और युद्ध में विजय के लिए आशीर्वाद और सुभकामनाये मांगी, ‘दिल्ली चलो’ नारा देकर उन्होंने अपने सैनिको का उत्साह बढाया एवं कोहिमा एवं मणिपुर के युद्ध में अंग्रेजो के दांत खट्टे कर दिए परन्तु ब्रिटिश सरकार की वायुसेना के सामने आजाद हिन्द कब तक टिकी रहती ,
सुभाषचंद्र बोस को रंगून छोड़ना पड़ा और 19 मई, 1945 को अंग्रेजो ने रंगून पर पुनः कब्जा जमा लिया, आजाद हिन्द फोज को इस युद्ध में भले ही हार का सामना करना पड़ा हो, पर ब्रिटिश सरकार के प्रशिक्षित सैनिको के छक्के छुड़ा देने वाली झांसी रेजीमेंट की वीरांगनाओ के अदम्य साहस, शौर्य और वीरता को कभी भुलाया नहीं जा सकता |
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सुभाषचंद्र बोस की म्रत्यु (how to death subhas chandra bose)
द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद सुभाषचंद्र बोस को नया रास्ता देखना आवश्यक था, उन्होंने रूस से सहायता मांगने का निश्चय किया, 18 अगस्त, 1945 को वे हवाई जहाज से मंचूरिया की और जा रहे थे, इस सफ़र के दोरान वे लापता हो गए | 23 अगस्त, 1945 को कथिक रूप से एक वायुयान दुर्घटना में उनकी म्रत्यु हो गई
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सुभाषचंद्र बोस के प्रति लोगो के अनन्य दुर्लभ प्रेम की भावना का ही परिणाम था कि वीसवी सदी के अंत तक भारतवासी यह मानते रहे कि उनके प्रिय नेताजी की म्रत्यु नहीं हुयी हे और आवश्यकता पड़ने पर वे पुनः देश की वागड़ोर संभालने को कभी भी आ सकते है देश के स्वतंत्रता संग्राम में सुभाषचंद्र की भूमिका को देखते हुए 1992 में उन्हें मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित करने की घोषणा हुई थी, परन्तु उनकी म्रत्यु की आधिकारिक पुष्टि न होने के कारण यह पुरस्कार नहीं दिया जा सका, नेताजी आज हमारे बीच सशरीर उपस्थिति नहीं है, पर देशभक्ति का उनका अमर सन्देश आज भी हमें देश के लिए सर्वस्य न्योछावर करने की प्रेरणा देता है | death of subhash chandra bose
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